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Tuesday, February 17, 2009

टॉयफायड



टॉयफायड क्या है ?

टॉयफायड का बुखार, जिसे एंटेरिक फीवर या केवल टॉयफायड भी कहते हैं, सालमोनेला एंटेरिका सेरोवर टायफी नाम बैक्टिरिया से होता है ।


यह कैसे होता है ?

यह विश्वभर में होता है । किसी संक्रमित व्यक्ति के पुरीष से संदूषित आहार या जल से यह इन्फेक्शन फैलता है । यह बैक्टिरिया फिर आँतों की दीवार में छेद कर देते हैं और मैक्रोफेजस द्वारा निगलने के लिए (फैगोसाइट) आक्रमण करते हैं । सालमोनेवा टाईफी अपनी रचना बदल कर इनसे अपना बचाव करते हैं । इस तरह मैक्रोफेजस से छूट मिलने पर पी एम एन पूरक घटक और इम्यून सिस्टम को क्षति पहुँचाने में इन्हें बाधा नहीं होती ।


प्रमुख लक्षण क्या है ?

टॉयफायड बुखार की पहचान 40 डिग्री सेंटिग्रड (104 डिग्री फारनहाईट) जैसे तेज बुखार से होती है । इसक साथ प्रचूर पसीना, गेस्ट्रोइन्टराईटिस और रक्तहीन अतिसार, चपटे ददोरे कम ही होते हैं, गुलाबी दाने निकल सकते हैं । चिर सम्मत टॉयफायड के बुखार की चार अवस्थाएँ होती है । प्रत्येक अस्था एक सप्ताह की होती है । पहले सप्ताह में बुखार धीरे धीरे बढ़ता है और इसके साथ रिलेटिव बैडिकर्डिया, मतली, सिरदर्द और खॉंसी होती है ।

एक चौथाई रोगियों में नाक से रक्त का रिसाव और पेट का दर्द भी हो सकता है । रक्त संचार में श्वेत कण की मात्रा कम (ल्यूकोपीनिया) इसनोफिल और अपेक्षाकृत लिंफोसाइट बढ़े होते हैं । डाइजो टेस्ट पॉजिटिव और सालमोनेला टाईफी और पैराटाईफी के लिए रक्त का कल्चर भी पॉजिटिव होता है । चिर सम्मत वाईडॉल टेस्ट प्रथम सप्ताह में निगेटिव होता है ।

दूसरे सप्ताह रोग लगभग 40 डिग्री सेन्टीग्रेड (104 डिग्री फारेनहाइट) के बुखार से निर्बल पड़ा रहता है और बैडिकार्डिया (स्फिगमोथर्मिक विघटन) चिर सम्मत द्विगुणित नाड़ी गति रहती है । बार बार उन्माद आता है, कभी शांत और कभी उत्तेजित होता है । इस उन्माद अवस्था के कारण टॉयफायड को नर्वस बुखार की उपसंज्ञा दी गयी है ।

एक तिहाई रोगियों में छाती के निचले हिस्से में गुलाबी दाने प्रकट होते हैं । फेफड़ों के मूल में रॉकई सुनाई पड़ता है, पेट फूला रहता है और नीचे दायीं ओर दर्द होता है । यहीं पर गैस की आवाज भी सुनाई पड़ती है ।

इस अवस्था में अतिसार हो सकते हैं । छ से आठ अतिसार प्रतिदिन हो सकते हैं । मल का रंग हरा और लाक्षणिक बदबू होती है । मल की तुलना मटर के सूप से की जाती है । कभी कभी कब्ज भी हो सकती है । लीवर और प्लीहा बढ़ जाते है (हिपैटोस्प्लिनोमिगेली) । इसमें दर्द रहता है और लीवर ट्रांसएमाइनेज बढ़ा रहता है । एंटी O और एंटी H एंटीबॉडिज के साथ वाइडाल पॉजिटिव रहता है । इस अवस्था में भी कभी कभी रक्त का कल्चर पॉजिटिव रह सकता है ।

टॉयफायड के तीसरे सप्ताह में अनेक उपद्रव हो सकते हैं -

* पेयर और पैच की सहायता सघनता के कारण रक्तस्राव होकर आंतों में रक्त का रिसाव हो सकता है । यह बहुत गंभीर होता है किन्तु घातक नहीं हो ।

* दूरस्थ ईलियम में आँतों का छेदन हो सकता है । यह एक गंभीर उपद्रव है और अक्सर घातक होता है । यह अचानक बिन भयप्रद लक्षण के हो जाता है । इसके बाद सेप्टिसीमिया और विस्तरित पेरिटोनाइटिस हो जाती है ।

* एसेपलाइटिस

* मोटास्टेटिक विद्रधि, कोलिसिस्टाइटिस, एंडोकार्डाइटिस और ऑस्टाइटिस

बुखार अभी भी तेज रहता है और 24 घंटों में थोड़ा बहुत फेर बदल होता है । निर्जलीकरण के कारण रोगी बहक जाता है (टॉयफायड का डिलिरियम) तीसरा सप्ताह समाप्त होने पर बुखार धीमा पड़ने लगता है इस डिफरटिसेंस कहते हैं । यहॉं से चौथा और अंतिम सप्ताह शुरू होता है ।


इसका निदान कैसे होता है ?

इसका निदान रक्त, अस्थि मज्जा या पुरीष और वाइडॉल से किया जाता है ।

महामारी में और निर्धन देशों में मलेरिया, संग्रहणी, निमोनिया के निवारण के बाद वाइडॉल टेस्ट और कल्चर रिपोर्ट आने तक प्रायः क्लॉरमफेनिकॉल का प्रयोग किया जाता है ।


इसकी चिकित्सा कैसे होती है ?

अधिकतर बार टॉयफायड घातक नहीं होता । विकसित देशों में एंपीसीलिन, क्लोरमफेनिकॉल, ट्राइमिथोप्रिम सल्फामिथाक्सोजॉल, एमक्सिन और सिप्रोफ्लोक्सिन जैसे एंटीबायोटिक दिये जाते हैं । एंटीबायोटिक द्वारा तुरन्त चिकत्सा किये जाने पर रोग-घातक दर 1% कम हो जाती है । चिकित्सा न करने पर टॉयफायड तीन सप्ताह से एक महीने तक चलते रहता है ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा टॉयफायड निवारण के लिये दो प्रकार के टीके का परामर्श दिया जाता है । वे हैं - जीवित, मौखिक टी वाय 21 ए टीका (वाइवोटिफ बर्ना नाम से मिलता है) और टॉयफायड पॉसैकरायड वैक्सीन का इन्जेक्शन (टाईफीन vi सनोफी, टाफेरिक्स ग्लैक्सो) इन दोनों में 50-80% तक सुरक्षा प्रदान होती है । जो पर्यटक टॉयफायड प्रभावित क्षेत्रों में यात्रा करते हैं उन्हें इसकी सलाह दी जाती है ।


उपयोगी वेबसाईट -

national portal of india : citizens : health : typhoid

typhoid fever causes, sypmtoms, treatment and vaccineon .....

who / typhoid fever

टिटेनस (आपातनक रोग)



टिटेनस क्या है ?

टिटेनस शारीरिक पेशियों की रुक रुक ऐंठने की एक अवस्था है । यह अवस्था किसी गहरी मार या चुभन के संक्रमम के बाद शुरू होती है और घाव के पास सारे शरीर में फैल जाती है और इसके परिणाम स्वरूप मृत्यु हो जाती है । इस रोग का महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस घातक रोग का सरलता पूर्वक निवारण मार लगने के बाद सम्यक तौर पर टीकाकरण से हो जाता है ।

यह कैसे होता है ?

यह इन्फेक्शन टिटेनोस्पासमिन से होता है । यह एक जानलेवा न्यरोटॉक्सिन है जो क्लोस्ट्रिडियम टेटेनाई नामक बैक्टिरिया से निकलता है । ये बैक्टिरिया धूल, मिट्टी, लौह चूर्ण कीचड़ आदि में होते हैं । इनसे गहरी चोट या जख्म दूषित हो जाते हैं । जैसे जैसे बीमारी बढ़ती है, पहले जबड़े की पेशियों में ऐंठन आती है । इसे लॉक जॉ कहते हैं । इसके बाद निगलने में कठिनाई होने लगती है और फिर सारे शरीर की पेशियों में जकड़न और ऐंठन होना शुरू होता है ।

यह रोग उन लोगों में होता है जो टीका नहीं लेते अथवा अपर्याप्त टीकाकरण करवाते हैं । टिटेनस सारे विश्व में होता है, किन्तु गर्म प्रदेश, नमी के वातावरण में जहॉं मिट्टी में खाद अधिक हो उनमें अधिक होता है । इसका कारण जिस मिट्टी में खाद डाली जाती है उसमें घोडे, भेड़, बकरी, कुत्ते, चूहे, सूअर, चूजों आदि मानवेतर पशुओं का पुरीष का उपयोग होता है और इन पशुओं के आंतों और पुरीष में बैक्टिरिया के स्पोर बहुतायत में होते हैं । खेतों में काम करनेवालों में भी ये बैक्टिरिया होते हैं ।

टीकाकरण से निवारण योग्य एकमात्र रोग टिटेनस हैं । यह इन्फेक्शन से होता है, किन्तु संक्रामक रोग नहीं है । इस रोग से संक्रमित रोगी से दूसरे में संक्रमण नहीं फैला सकता ।

इसके प्रमुख कारण

स्थानीय टिटेनस : यह इतना साधारण प्रकार नहीं है । इसमें चोट की जगह पर रोगी को निरंतर ऐंठन होती है । ऐंठन शान्त होने में कुछ हफ्ते लग पाते हैं । स्थानीय टिटेनस प्रायः मन्द होता है, केवल 1% रोगियों में यह घातक हो सकता है । किन्तु इस रोग में बाद में सार्वदैहिक टिटेनस भी हो सकता है ।

कैफेलिक टिटेनस : यह एक दुर्लभ प्रकार है । यह प्रायः ओटाइटिस मिडिया (कान का इन्फेक्शन) के साथ होता है, जिसमें कान के फ्लोरा में सी. टिटेनाई मध्यकर्ण में उपस्थि रहते हैं अथवा यह सिर की मार के बाद होता है । इसमें विशेषकर मुँह के भाग में क्रेनियल नर्व प्रभावित होती है ।

सार्वदैहिक टिटेनस - यह अधिकतर पाया जाने वाले टिटेनस है, जो कि 80% रोगियों में पाया जाता है । इसका सार्वदैहिक प्रभाव सिर से आरंभ होकर निचले शरीर में आता है । पहला लक्षण ट्रिसमस या जबड़े बन्द होना (लॉक जॉ) होता है । मुँह की पेशियों में जकड़न होती है, जिसे रिसस सोर्डोनिकस कहते हैं । इसके बाद गर्दन में ऐंठन, निगलने में तकलीफ, छाती और पिंडली की पेशियों में जकड़न होती है । अन्य लक्षण होते हैं - बुखार, पसीना, ब्लडप्रेशर बढ़ना और ऐंठन आने पर हृदय गति बढ़ना । शरीर में ऐंठन के झटके बार बार आते हैं और कई मिनटों तक रहते हैं । दौरे आने पर शरीर विचित्र प्रकार से मुड़ता है । इसे ओपिस्थोटोनस (धनुषाकार) कहा जाता है । ये दौरे 3-4 हफ्ते तक आते रहते हैं और पूरी तरह से ठीक होने में महीने लग जाते हैं ।

शिशुओं का टिटेनस : यह एक सार्वदैहिक टिटेनस जैसे नवजात शिशुओं में होता है । यह उन नवजातों में होता है जिन्हें गर्भस्थ रहने पर मॉं द्वारा पैसिव इम्युनिटी नहीं मिलती, जब कि प्रसूता मॉं का टीकाकरण बराबर नहीं होता । यह प्रायः नाभि का घाव बराबर न सूखने के कारण होता है, विशेषतः नाभि काटने में बिना स्टेराइल उपकरणों का उपयोग करने पर नवजात शिशु में यह हो सकता है । कई विकासशील देशों में नवजातों का टिटेनस होना आम है । इस कारण लगभग 14% नवजातों की मृत्यु होती है । किन्तु विकसीत देशों में यह दुर्लभ होता है ।

मन्द टिटेनस की चिकित्सा ऐसे की जाती है -

* टिटेनस इम्यून ग्लोबलिना का अन्तःशिरा या अन्तःपेशिय उपयोग

* 10 दिन मेट्रोनिडॉजोल का अन्तशिरा उपयोग

* डायजेपाम

* टिटेनस का टीकाकरण

गंभीर रोग को सघन चिकित्सा के लिए भरती करवाया जाता है । यह उपरोक्त मंद टिटेनस के उपायों के अतिरिक्त होते हैं ।

* ह्यूमन टिटनेस इम्यूनोग्लाबलिन, इन्ट्रीथिकल दिये जाते हैं । (इससे 4% से 35% लाक्षणिक लाभ होता है ।)

* मैकेनिकल वायु संचार के लिए ट्रैकियोस्टोमी 3-4 हफ्तों के लिए दी जाती है ।

* पेशीय ऐंठन रोकने के लिए अन्तःशिरा द्वारा मैगनिशियम दिया जाता है ।

* डायेजापाम (जो वैलियम नाम से मिलता है) लगातार अन्तःशिरा द्वारा दिया जाता है ।

* टिटनस का ऑटोनामिक प्रभाव की व्यवस्था करना मुश्किल होता है । (कभी ब्लड प्रेशर बढ़ना, कभी कम होना, कभी शरीर का तापमान बढ़ना, कभी कम हो जाना) इसके लिए अंतःशिरा द्वारा लैबिटॉलॉल, मैगनिशियम, क्लोनिडिन या निफेडेविन की जरूरत होती है ।

डायजापाम और अन्य पेशीय रिलेक्सेंट पेशियों की ऐंठन कम करने के लिए दिये जाते हैं । अत्यन्त गंभीर रोगी में पक्षाघात कारक औषधी - क्यूरारे जैसी औषधी का उपयोग भी करना पड़ता है और रोगी को मैकानिकल वैंटीलेटर पर रखा जाता है । टिटेनस से जान बचाने के लिए यह एक कृत्रिम श्वासपथ (एयर वे) और सम्यक पोषण आहार देना आवश्यक होता है । 3500-4000 कैलोरी और कम से कम 150 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन द्रव के रूप में ट्यूब द्वारा आमाशय तक पहुँचाया जाता है ।

उपोयगी वेबसाईट -

tetanus _wikipedia, the free encyclopedia

tetanus toxoid vaccine, serum institute of india ltd.

tetanus_symtoms, treatment and prventation

रतिरोग : यौनाचार से होने वाले रोग


यह क्या है ?

रतिरोग या वेनेरियल रोग वे रोग है जो किसी के यौन संपर्क, यौनि, मौखिक या गुद संभोग के कारण होते हैं ।

यह कैसे होता है ?

रतिरोग के विभिन रूप हैं

बैक्टिरिया -

* शैंक्रयड (हीमोफिलस ड्यूकार्ड)

* डोनोवेट्रोसिस ( ग्रेनूलोमा इंगावनेल या केलिमेटो बैक्टिरियम ग्रेनूलोमिटिस)

* गोनोरिया (निंसिरिया गोनोरी)

* लिंफोग्रेनूलोमा वेनेरियम (एल.जी.वी.), क्लामाईडिया, ट्रकोमेटिस सिरोटाईप एल1, एल2, एल3

* नॉन-गोनोकॉकस यूरेथ्रटिस (एन.जी.यू.)(यूरोप्लाज्मा यूरेलियम या माइकोप्लाज्मा ट्रांसमिसिबल)

* सिफिलिस (ट्रैपोनिमा पैलिडिम)

फंगल

* टिनिया क्रूरिस जॉकइच (ट्राइकोफायटोन रुब्रम और अन्य) -यौनाचर जनित

* यीस्ट का संक्रमण

वायरल

* एडिनोवायरस, जो मोटापे का कारण समझा जाता है । यौनाचार द्रव (मल अथवा श्वसन द्रव)

* वायरल हिपेटाइटिस

हिपेटाइस बी वायरस (लीवर कैंसर) लार, यौनाचार द्रव

नोट : हिपेटाइटिस ए और ई मल और मुख द्वार से फैलते हैं । हिपेटाइटिस सी (लीवर कैंसर) यौनाचार से दुर्लभ फैलता है । हिपेटाइटिस डी फैलने का कारण अज्ञात है, किन्तु यौनाचार से फैल सकता है ।

* हर्पिस सिंप्लेक्स (हार्पिस सिंप्लेक्स वायरस 1,2), एच एस वी 2, त्वचा या म्यूकोस से बिना फफोलों से भी फैल सकता है ।

* हर्पिस सिंप्लेक्स वायरस 1 अल्जाईमर रोग संबद्ध हो सकता है ।

* एच आई वी / एड्‌स (ह्यूमैन इम्यूनोडिफिशियेंसी वायरस)- यौनाचार द्रव

* ह्यूमैन पौपिलोमा वायरस (एच पी वी - लगभग 30-40 में यौनाचार से फैलता है) बिना वार्ट की उपस्थिति में त्वचा या म्यूकोसा से फैलता है ।

इन एच की स्ट्रैन से गुद-जननेद्रिय, मुख, गला और श्वसन संस्थान के वार्ट हो सकते है ।

इनसे डिसप्लेसिया होकर, योनिग्रीवा का कैंसर, शिश्न का कैंसर, गुदा का कैंसर, सिर या गर्दन का कैंसर, श्वसन का पैपिलोमेटोसिस हो सकता है ।

* म्यूकोसम कॉन्टेजिपोससम (एम सी वी) -नजदीकी संपर्क द्वारा

* मानो न्यूक्लियोसिस (सी एम वी-हर्पिज 5 ई बी वी- हर्पिज 4) ई बी वी लार द्वारा , सी एम वी लार, स्वेद, मूत्र, मल और यौनाचार द्रव द्वारा

* कोपोस्की का सारकोमा 6 यह सारकोमा हर्पिज वायरस से संबद्ध होता है ।

पैरासाईट

* उरूमूल केश की जुएँ, जिसे क्रैब भी कहते हैं । (फिथ्रिमस ज्यूबिस)

* खुजली (सारकोपेटिस स्कैगई)

प्रोटो जोआ

· ट्राइकोमोनिपासिस (ट्राइकोमानास वजैनेलिस)

यौनाचार से आँतों का इन्फेक्शन

कई बैक्टिरिय के इन्फेक्शन (शाइगेल्ला, कैंपेलोबेक्टर या सालमोनेला) वायरल (हिपेटाइटिस ए, एडिनो वायरस) या पैरासाईट (जियारडिया या अमीबा) यौनाचार से संक्रमण हो गुद और मौखिक संक्रमण पैदा करते हैं ।

यौनाचार के खिलौने को बिना साफ किये उपयोग करने अथवा कई सहभागी एक खिलौने का उपयोग करने पर गुद-मुख के कांबीनेशन के रोग होते हैं । प्रोक्टाइटिस के बिना भी ये बैक्टिरिया गुदा में उपस्थित रहते हैं । ये प्राय अतिसार, बुखार, आध्मान, मतली और पेट का दर्द पैदा करते हैं । इससे रतिरोग अवह संस्थान में फैलने का अनुमान लगाया जाता है ।

मुख द्वारा रतिरोग का इन्फेक्शन

साधारण जुकाम, फ्लू, स्ट्रप्टोकोकस ऑरियस, ई कोलाई, एजिनो वायरस, ह्यमैन पैपिलोमा वायरस, मौखिक हर्पिज (1,2 और 4,5,8) , हिपेटाइटिस बी और यीस्ट, कैनडिडा एल्विकैन से मुख द्वारा इन्फेक्शन फैल सकता है ।

इसके मुख्य लक्षण क्या है ।

कारण के आधार पर लक्षण होते हैं । किन्त जननेन्द्रिय में घाव हो सर्व साधारण बात होती है । इसमें रिसावहीन भी हो सकता है, जो किसी स्त्रियों में सामान्यतया होता है ।

उपयोगी वेबसाईट -

sexually transmitted disease_wikipedia, the tree encyclopedia

sexually transmitted disease_information from cdc

national portal of india : citizens : health : sexually .....

national aids. policy

रैबिज


रैबिज क्या है ?

रेबिज को हाइड्रोफोबिया भी कहा जाता है । यह पशुओं से फैलनेवाला वायर जूनोटिक इन्फेक्शन है । इससे इनकैफोलाइटिस जैसा उपद्रव होता है जो कि निश्चित रूप से चिकित्सा न किये जाने पर घातक होता है । इसका प्रमुख कारण किसी पागल कुत्ते का काटना होता है ।


रेबिज कैसे होती है ?

* किसी संक्रमित पशु के काटने या खुले घाव को चाटने से यह इन्फेक्शन होता है । यह इन्फेक्शन पशुओं में लड़ने या काटने से फैलता है । जब ऐसे संक्रमित पशु आदमी के संपर्क में आते हैं तो इसे आदमी में भी फैलाते हैं । आदमी से आदमी में यह इन्फेक्शन नहीं फैलता ।

* एक बार वायरस आदमी के शरीर में प्रवेश करने यह इन्द्रिय संस्थान पर आक्रमण करता है और मेरूदंड से मस्तिष्क तक जाकर एनसेफलाइटिस उत्पन करता है जो कि घातक होती है ।

* इनफेक्शन के फैलने से बचने का उपाय एंटी बॉडीज होती है । जो कि टीका करण या इम्यूनोग्लोबलिन चिकित्सा द्वारा दी जाती है, यह काटने के 24 घंटे भीतर दिया जाना चाहिए । यह इन्फेक्शन को रोक सकता है ।

* कुत्ता काटने पर प्रत्येक को एंटी रैबीज लगाया जाता है । इससे रोग निवारण और कुत्ता संक्रमित हो तो रोग से रक्षा होती है ।


रैबिज के प्रमुख लक्षण क्या हैं ?

* प्रारंभिक लक्षण हैं - बुखार, मतली और सिर दर्द

* धीरे-धीरे इन्फेक्शन इन्द्रिय संस्थान में फैलता है और अनैच्छिक छटके, अनियंत्रित उत्तेजना, सुस्ती और श्वास का पक्षाघात होता है, यहॉं तक कि पानी भी नहीं निगल पा सकता । पानी पीने का प्रयत्न करने पर आचानक ऐंठन आकार श्वास नली में रुद्धता होकर सांस लेने में तकलीफ होने लगती है । इसका रोगी पानी से डरने लगता है । रैबिज के पीड़ित पशु भी पानी से डरते हैं ।

* एक बार यह लक्षण प्रकट होने पर समान्यता इसका कोई इलाज नहीं है और रोगी श्वासावरोध से मर जाता है ।


इसका निदान कैसे होता है?

* इसका निदान लाक्षणिक है । कुत्ते काटने का वृत्तान्त और कुत्ते काटने के निशान देखे जाते हैं ।

* रक्त और लार की परीक्षा कर पर वायरस देखे जाते हैं । किन्तु इसका कोई सारांश नहीं होता ।

* प्रायः मरणोपरान्त मस्तिष्क के नमूने लेने पर इसमें लाक्षणिक नेग्री बॉडिज देखी जाती है, जो कि वायरस के इन्फेक्शन के कारण होती है ।


इसका इलाज कैसे होता है ?

* रैबिज रोकथाम की मुख्यधारा चिकित्सा है कि कुत्ता काटते ही तुरन्त 6 से 8 घंटे या अधिक से अधिक 24 घंटों में एंटी बायोटिक का टीका लगवालेना चाहिए । इस टीको के 3, 5 या 7 इन्जेक्शन दिये जाते हैं । यह रोगी के शरीर पर कुत्ता काटने और कुत्ते में रैबिज होने पर आधारित होता है । यदि कुत्ता काटने के 10 दिन के बाद तक भी स्वस्थ है तो सावधानी के लिए 3 इन्जेक्शन ही पर्याप्त है ।

* यदि कुत्ता असामान्य व्यवहार करता है जैसे कई अन्य लोगों को काटता है, बिना छेड़छाड़ के काटता है, इधर-उधर भागता है, क्रोधित घूरता है और लगातार लार पड़ती है या किसी कोने में निढ़ाल पड़े रहता है, पानी नहीं पाता या 10 दिन में मर जाता है, तो यह समझना चाहिए कि कुत्ता रैबिड है । ऐसी स्थिति में इन्जेक्शन का पूरा कोर्स लेना चाहिए ।

* निश्चित रूप से रैबिड कुत्ते ने काटा हो तो एंटीबॉडिज की अतिरिक्त चिकित्सा और इम्यूनोग्लोबिन लेना चाहिए । इससे रोग का निवारण होने में सहायता मिलती है ।

संदेहास्पद कुत्ता या पशु काटने पर ये सावधानियॉं जरूरी है -

* जितना हो सके घाव को बहते कुनकुने पानी से धोना चाहिए ।

* घाव को खभी भी ढकें नहीं, इसकी पट्टी न करें और टाकें न लागवायें ।

* नजदीकी दवाखाने में या सरकारी अस्पताल में जायें, जहॉं ए.आर.वी. उपलब्ध होती है

* कुत्ता या पशु का निरीक्षण 10 दिन तक करें ।

* यदि कुत्ता पालतू है तो जाने कि उसे टीका दिलाया गया अथवा नहीं और जाने की उसे घुमाने ले जाया जाता है या नहीं । उस क्षेत्र के अन्य घूमंतु पशुओं की जानकारी प्राप्त करें ।


उपयोगी वेबसाईट -

rabies : what we know and what we need to know