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Tuesday, February 17, 2009

लैप्टोस्पाइरोसिस

लैप्टोस्पाइरोसिस क्या है ?

इसे विल्स रोग भी कहलाता है । यह लैप्टोस्पाइरा नामक बैक्टिरिया सो होता है जो एक प्रकार का जूनोटिक (पशुओं द्वारा फैलने वाला) बैक्टिरिया है । यह संक्रमित पशु के मूत्र से फैलती है ।

लैप्टोस्पाइरोसिस कैसे होता है ?

यह संक्रमित पशु के मूत्र या वीर्य से फैलता है, जो कि प्राय जल के स्रोत में जल में मिल जाता है । इस प्रकार इसका प्रवेश हमारे शरीर में संक्रमित जलपान अथवा तवचा द्वारा होता है । यह इन्फेक्शन उन लोगों में साधारणतया होता है, जो पालतू जानवरों को पालते हैं, फर के कारखानों में काम करते है अथवा जल मल निकास काम करते है अथवा बरसात या बाढ़ की महामारी के बाद होता है । चूहों के मूत्र से फैलता, ऐसा माना जाता है ।

इसमें वैरकुलाइटिस होती है और यह कई लक्षणों को उत्प करके विभि अवयवो जैसे लीवर और प्लीहा को खराब कर देती है ।

लैप्टोस्पाइरोसिस के प्रमुख लक्षण क्या हैं ?

* बीमारी की शुरुआत फ्लू, ठंड लगना, अत्यधिक बेचैनी और सिरदर्द से होती है ।

* चमड़ी और आँखों में पीलेपन के साथ पीलिया होता है । पेट का दर्द, अतिसार और वमन भी सामान्य लक्षण होते हैं ।

* चिकित्सा न करने पर मेनिनजाइटिस, हृदयरोग और तीव्र रक्तस्राव भी होता है।

* रोग की अग्रिम अवस्था में उपद्रव होकर गुर्दे और लीवर भी काम करना बंद कर देते हैं ।

इसका निदान कैसे होता है ?

* शरीर में बैक्टिरिया भी पहचान रक्त और मूत्र परीक्षा करते निदान किया जाताहै ।

* रक्त परीक्षा में लीवर के एंजाइम का स्तर बढ़ा होता है । इलेक्टोलाईट गुर्दे के फेलयर को दर्शाते हैं ।

उसकी चिकित्सा कैसे की जाती है?

* चिकित्सा का मुख्य ध्येय का अवयवों की क्षति को रोकना होता है साथ ही सहायात्मक चिकित्सा की जाती है ।

* बैक्टिरिया को समाप्त करने के लिए एंटीबायोटिक दिये जाते हैं । इससे रोग की विशाक्तता कम होती है ।

उपयोगी वेब साईट

how to diagnose leptospirosis

emedicine leptospirosis in human article by judith green mckenzie

wtto / 1997_ leptospirosis in india

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