टॉयफायड क्या है ?
टॉयफायड का बुखार, जिसे एंटेरिक फीवर या केवल टॉयफायड भी कहते हैं, सालमोनेला एंटेरिका सेरोवर टायफी नाम बैक्टिरिया से होता है ।
यह कैसे होता है ?
यह विश्वभर में होता है । किसी संक्रमित व्यक्ति के पुरीष से संदूषित आहार या जल से यह इन्फेक्शन फैलता है । यह बैक्टिरिया फिर आँतों की दीवार में छेद कर देते हैं और मैक्रोफेजस द्वारा निगलने के लिए (फैगोसाइट) आक्रमण करते हैं । सालमोनेवा टाईफी अपनी रचना बदल कर इनसे अपना बचाव करते हैं । इस तरह मैक्रोफेजस से छूट मिलने पर पी एम एन पूरक घटक और इम्यून सिस्टम को क्षति पहुँचाने में इन्हें बाधा नहीं होती ।
प्रमुख लक्षण क्या है ?
टॉयफायड बुखार की पहचान 40 डिग्री सेंटिग्रड (104 डिग्री फारनहाईट) जैसे तेज बुखार से होती है । इसक साथ प्रचूर पसीना, गेस्ट्रोइन्टराईटिस और रक्तहीन अतिसार, चपटे ददोरे कम ही होते हैं, गुलाबी दाने निकल सकते हैं । चिर सम्मत टॉयफायड के बुखार की चार अवस्थाएँ होती है । प्रत्येक अस्था एक सप्ताह की होती है । पहले सप्ताह में बुखार धीरे धीरे बढ़ता है और इसके साथ रिलेटिव बैडिकर्डिया, मतली, सिरदर्द और खॉंसी होती है ।
एक चौथाई रोगियों में नाक से रक्त का रिसाव और पेट का दर्द भी हो सकता है । रक्त संचार में श्वेत कण की मात्रा कम (ल्यूकोपीनिया) इसनोफिल और अपेक्षाकृत लिंफोसाइट बढ़े होते हैं । डाइजो टेस्ट पॉजिटिव और सालमोनेला टाईफी और पैराटाईफी के लिए रक्त का कल्चर भी पॉजिटिव होता है । चिर सम्मत वाईडॉल टेस्ट प्रथम सप्ताह में निगेटिव होता है ।
दूसरे सप्ताह रोग लगभग 40 डिग्री सेन्टीग्रेड (104 डिग्री फारेनहाइट) के बुखार से निर्बल पड़ा रहता है और बैडिकार्डिया (स्फिगमोथर्मिक विघटन) चिर सम्मत द्विगुणित नाड़ी गति रहती है । बार बार उन्माद आता है, कभी शांत और कभी उत्तेजित होता है । इस उन्माद अवस्था के कारण टॉयफायड को नर्वस बुखार की उपसंज्ञा दी गयी है ।
एक तिहाई रोगियों में छाती के निचले हिस्से में गुलाबी दाने प्रकट होते हैं । फेफड़ों के मूल में रॉकई सुनाई पड़ता है, पेट फूला रहता है और नीचे दायीं ओर दर्द होता है । यहीं पर गैस की आवाज भी सुनाई पड़ती है ।
इस अवस्था में अतिसार हो सकते हैं । छ से आठ अतिसार प्रतिदिन हो सकते हैं । मल का रंग हरा और लाक्षणिक बदबू होती है । मल की तुलना मटर के सूप से की जाती है । कभी कभी कब्ज भी हो सकती है । लीवर और प्लीहा बढ़ जाते है (हिपैटोस्प्लिनोमिगेली) । इसमें दर्द रहता है और लीवर ट्रांसएमाइनेज बढ़ा रहता है । एंटी O और एंटी H एंटीबॉडिज के साथ वाइडाल पॉजिटिव रहता है । इस अवस्था में भी कभी कभी रक्त का कल्चर पॉजिटिव रह सकता है ।
टॉयफायड के तीसरे सप्ताह में अनेक उपद्रव हो सकते हैं -
* पेयर और पैच की सहायता सघनता के कारण रक्तस्राव होकर आंतों में रक्त का रिसाव हो सकता है । यह बहुत गंभीर होता है किन्तु घातक नहीं हो ।
* दूरस्थ ईलियम में आँतों का छेदन हो सकता है । यह एक गंभीर उपद्रव है और अक्सर घातक होता है । यह अचानक बिन भयप्रद लक्षण के हो जाता है । इसके बाद सेप्टिसीमिया और विस्तरित पेरिटोनाइटिस हो जाती है ।
* एसेपलाइटिस
* मोटास्टेटिक विद्रधि, कोलिसिस्टाइटिस, एंडोकार्डाइटिस और ऑस्टाइटिस
बुखार अभी भी तेज रहता है और 24 घंटों में थोड़ा बहुत फेर बदल होता है । निर्जलीकरण के कारण रोगी बहक जाता है (टॉयफायड का डिलिरियम) तीसरा सप्ताह समाप्त होने पर बुखार धीमा पड़ने लगता है इस डिफरटिसेंस कहते हैं । यहॉं से चौथा और अंतिम सप्ताह शुरू होता है ।
इसका निदान कैसे होता है ?
इसका निदान रक्त, अस्थि मज्जा या पुरीष और वाइडॉल से किया जाता है ।
महामारी में और निर्धन देशों में मलेरिया, संग्रहणी, निमोनिया के निवारण के बाद वाइडॉल टेस्ट और कल्चर रिपोर्ट आने तक प्रायः क्लॉरमफेनिकॉल का प्रयोग किया जाता है ।
इसकी चिकित्सा कैसे होती है ?
अधिकतर बार टॉयफायड घातक नहीं होता । विकसित देशों में एंपीसीलिन, क्लोरमफेनिकॉल, ट्राइमिथोप्रिम सल्फामिथाक्सोजॉल, एमक्सिन और सिप्रोफ्लोक्सिन जैसे एंटीबायोटिक दिये जाते हैं । एंटीबायोटिक द्वारा तुरन्त चिकत्सा किये जाने पर रोग-घातक दर 1% कम हो जाती है । चिकित्सा न करने पर टॉयफायड तीन सप्ताह से एक महीने तक चलते रहता है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा टॉयफायड निवारण के लिये दो प्रकार के टीके का परामर्श दिया जाता है । वे हैं - जीवित, मौखिक टी वाय 21 ए टीका (वाइवोटिफ बर्ना नाम से मिलता है) और टॉयफायड पॉसैकरायड वैक्सीन का इन्जेक्शन (टाईफीन vi सनोफी, टाफेरिक्स ग्लैक्सो) इन दोनों में 50-80% तक सुरक्षा प्रदान होती है । जो पर्यटक टॉयफायड प्रभावित क्षेत्रों में यात्रा करते हैं उन्हें इसकी सलाह दी जाती है ।
उपयोगी वेबसाईट -
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2 comments:
I like this post because this blog good information instead of Tayfaid
जहां तक मुझे ध्यान आ रहा है कि जब मैं बंबई में सर्विस करता था और 1990's में टाइम्स आफ इंडिया में हैल्प लाइब्रेरी के बारे में एक बढ़िया सा लेख पढ़ा था. उस के बाद मैं कैंपस-कार्नर में आप की लाइब्रेरी देखने भी गया था ---अगर यह वही ग्रुप है तो मुझे लिखियेगा।
मैं भी यह सब लिखने का ही काम कर रहा हूं।
मीडिया डाक्टर
http://drparveenchopra.blogspot.com
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